बकरीद का त्योहार दुनियाभर में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. बकरीद का ये त्योहार ईद -उल-फितर के लगभग 70 दिन बाद मनाया जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 12वें महीने यानि ईद-अल-हज्जा के दसवें दिन बकरीद का पर्व मनाया जाता है. रमजान के रोजे रखने के बाद पड़ने वाली ईद को जहां लोग मीठी ईद के नाम से जानते हैं तो वहीं बकरीद को कुर्बानी की ईद के नाम से जाना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार इस साल बकरीद का पर्व 16 जून 2023 को पड़ने जा रहा है. इस्लामिक परपरा के अनुसार बकरीद वाले दिन कुर्बानी देने से पहले कुछेक नियमों का पालन करना बेहद जरूरी माना गया है. आइए फर्ज-ए-कुर्बानी के पहले पालन किए जाने वाले इन नियमों के बारे में विस्तार से जानते हैं.
बताया कि ईद-उल-अजहा का त्योहार बलिदान के रुप में मनाया जाता है. हजरत इब्राहीम को जब बार-बार अल्लाह के लिए अपने बेटे की कुर्बानी का सपना आने लगा तो उन्होंने यह बात अपने बेटे को बताई. ऐसा सुनते ही उनके बेटे इसे ईश्वर की रजा मानते हुए तुरंत राजी हो गये. मान्यता है कि ईश्वर इस कुर्बानी के जरिए अपने दूत इब्राहीम की परीक्षा ले रहे थे. मान्यता है कि जिस समय इब्राहीम अपने बेटे को कुर्बान करने चले, उस समय शैतान ने उनके मन को भटकाने की कोशिश की, लेकिन वे जरा भी नहीं डगमगाए और उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध कर कुर्बानी की प्रक्रिया पूरी की. मान्यता है कि जब इब्राहीम अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे थे तभी ईश्वर ने उनके बेटे को हटाकर उसकी जगह एक बकरा रख दिया था. इस्लाम में तब से लेकर आज तक बकरीद पर कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है.
मौलाना आलम मुस्तफा याकूबी ने बताया कि इस्लाम में कुर्बानी को लेकर कुछ नियम भी बताए गए हैं, जिनका पालन करना हर किसी के लिए आवश्यक होता है. इन नियमों को ध्यान में रखते हुए कुर्बानी पूरी मानी जाती है. आइए जानते हैं ईद उल अजहा पर कुर्बानी के क्या नियम हैं
.
सबसे पहले पहले तो जिस जानवर की कुर्बानी दी जानी हो वह बालिग होना चाहिए.
दूसरा जानवर को कहीं चोट आदि न लगी हो, उसके सींग और पैर सुरक्षित होने चाहिए.
वहीं नमाज अदा करने के बाद कुर्बानी के वक्त जानवर और उसे जिबह करने वाले दोनों का मुंह कर्बला की तरफ होना चाहिए.
वहीं कुर्बानी के बाद उसके तीन भाग किए जाते हैं जो घरवालों,रिश्तेदारों और गरीबों में बांटा जाता है.
कुर्बानी करने में दिखावा आ जाए तो उसका सबाव नहीं मिलता जो अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करेगा, उसे यकीनन अल्लाह की रजा हासिल होगा.
जिस व्यक्ति के पास पहले से ही कर्ज है, वह व्यक्ति कुर्बानी नहीं दे सकता। कुर्बानी देने वाले के पास किसी भी तरह कोई कर्ज नहीं होना चाहिए.
जो व्यक्ति अपनी कमाई का ढाई फीसदी दान देता है और समाज की भलाई के लिए धन के साथ साथ कोई ना कोई काम करता रहता हो, उसके लिए कुर्बानी जरूरी नहीं है.