अब जब 18वीं लोकसभा के चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा होने वाली है, तब तीन सदस्यों वाले चुनाव आयोग में दो ही सदस्य बचे हैं। आयोग में फिलहाल मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ही हैं।
तीसरे चुनाव आयुक्त अनूप पांडेय 15 फरवरी को रिटायर हो चुके हैं। हालांकि, सरकार ने तीसरे आयुक्त की तैनाती के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है लेकिन इस बात की संभावना कम ही है कि आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले ये नियुक्ति हो सकेगी।
ऐसी स्थिति में दो सदस्यीय चुनाव आयोग को ही लोकसभा चुनाव कराने होंगे। अगर ऐसा होता है तो 2024 का लोकसभा चुनाव 1996 के बाद पहला ऐसा चुनाव होगा, जब दो चुनाव आयुक्त ही मतदान की तारीखों का ऐलान भी करेंगे और चुनाव भी संपन्न कराएंगे।
1950 में गठित भारत का निर्वाचन आयोग 1990 में तीन सदस्यों वाला आयोग बन गया था और तब से अब तक कुल आठ बार लोकसभा का चुनाव करा चुका है। 2024 का चुनाव नौवां चुनाव होगा।
नियमानुसार चुनाव की तारीखों का ऐलान होने से पहले अगर सरकार ने तीसरे चुनाव आयुक्त की नियुक्ति नहीं की तो आदर्श आचारसंहिता लागू हो जाने के बाद इसके लिए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार से इजाजत लेनी होगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही कानून तीन सदस्यीय चुनाव आयोग का प्रावधान करता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि चुनाव कराने के लिए तीन सदस्य होने ही चाहिए।
इससे पहले दो बार 1999 और 2009 में लोकसभा चुनावों के दौरान ही तीन सदस्यों वाले आयोग में एक सदस्य कम पड़ गए थे। ऐसा बीच चुनाव आयुक्तों के रिटायर होने की वजह से हुआ था।
हालांकि, इस साल का मामला थोड़ा अलग है क्योंकि 1999 और 2009 के मामले में सदस्य का रिटायरमेंट बीच चुनाव में हुआ था, जबकि इस बार अनूप पांडेय 15 फरवरी को ही सेवानिवृत हो गए।
बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालास्वामी रिटायर हो गए थे। उन्होंने 2 मार्च 2009 को चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था और पहले चरण का मतदान होते ही 20 अप्रैल 2009 को रिटायर हो गए थे।
उनके बाद नवीन चावला ने CEC का पदभार संभाला था। तब आयोग में सिर्फ दो सदस्य नवीन चावला और एसवाई कुरैशी ही बचे थे और इन्होंने ही पूरा चुनाव संपन्न करवाया था।
इसी तरह 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनाव के समय एम एस गिल मुख्य चुनाव आयुक्त थे। उनके साथ जीवीजी कृष्णामूर्ति और जेएम लिंगदोह चुनाव आयुक्त थे।
अंतिम चरण के मतदान से तीन दिन पहले ही कृष्णामूर्ति रिटायर हो गए थे। उसके बाद दो सदस्यीय आयोग ने बाकी बचे काम पूरे किए थे। 1950 से 1989 तक चुनाव आयोग एक सदस्यीय ही था।